राजीव बहल ब्यूरो मंडी
जोगिन्दर नगर उपमंडल मुख्यालय से लगभग 45 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है पवित्र धार्मिक स्थान त्रिवेणी महादेव। तीन नदियों ब्यास, बिनवा तथा गुप्त गंगा (क्षीर गंगा) के मिलन स्थल को ही त्रिवेणी महादेव के नाम से जाना जाता है। यहां पर जो शिवलिंग स्थापित है वो स्वयंभू शिवलिंग है जो अपने आप धरती से निकला है। हमारे पुराणों में एवं सनातन धर्मशास्त्रों में इसकी बड़ी व्याख्या की गई है। माना जाता है कि इस पवित्र स्थान का इतिहास लगभग तीन सौ वर्ष से अधिक पुराना है।
त्रिवेणी महादेव मंदिर का इतिहास
इस पवित्र धार्मिक स्थान से जुड़े इतिहास की चर्चा करें तो माना जाता है कि आज से करीब तीन सौ वर्ष पहले मंडी रियासत के वजीर कर्म सिंह के कोई सन्तान नहीं थी जिसके लिए उन्होंने कई यज्ञ व अनुष्ठान किए। इसके पश्चात उन्हें स्वप्न में आदेश हुआ कि बैजनाथ से नीचे जहां पर ब्यास नदी व बिनवा नदी मिलती है उस स्थान पर जाइए। उसी संगम स्थल के ऊपर एक गुफा है जिसमें एक महात्मा जी रहते हैं, वे महात्मा जी ही आपको सन्तान दे सकते हैं। वजीर अपने कर्मचारियों को साथ लेकर गुफा में पहुंचे तथा महात्मा जी के दर्शन करके उनसे सन्तान प्राप्ति के लिए प्रार्थना की। महात्मा जी ने उन्हें साफ इन्कार कर दिया कि तुम्हारा पिछला जन्म जो था वह अच्छा नहीं था, इसलिए तुम्हें सन्तान प्राप्ति नहीं होगी। मगर वजीर को पूर्ण विश्वास था कि महात्मा जी के आशीर्वाद से सन्तान प्राप्ति हो सकती है।
तब वजीर अपने कर्मचारियों के साथ उसी गुुफा के सामने एक तंबू लगाकर बैठ गये। उस जमाने में वजीरों का बहुत बोलबाला होता था, जिसकी वजह से दूर-दूर गांव से लोग आने लगे। इसी प्रकार जब सात-आठ दिन बीत गये तो महात्मा जी गुफा से निकले और वजीर से बोले कि तुम यहां पर इतना शोरगुल क्यों कर रहे हो? मेरी साधना में बाधा हो रही है। वजीर महात्मा जी से प्रार्थना की कि महाराज जी आपके आशीर्वाद से ही मुझे सन्तान प्राप्ति होगी, यह मुझे पूर्ण विश्वास है। महात्मा जी बोले ठीक है आपको सन्तान प्राप्ति होगी या नहीं यह मैं कल सुबह बताउंगा।
इसके पश्चात जब दूसरे दिन महात्मा जी गुफा से बाहर निकले तो वजीर ने जाकर उन्हें प्रणाम किया तब महात्मा जी ने उन्हें आशीर्वाद देते हुए कहा कि मैं तुम्हें दो सन्तान प्राप्ति के लिए आशीर्वाद देता हूँ। मगर भगवान स्वयं यहां प्रकट होना चाहते हैं। उनके लिए दिव्य मंदिर यहां पर बनाना होगा। वजीर के पास धन की कोई कमी नहीं थी, उन्होंने उसी समय राजमहल में आदमी भेजकर उस जमाने के चांदी के सवा लाख सिक्के मंगवाकर महात्मा जी के चरणों में रख दिये और महात्मा जी से आग्रह किया कि आप मंदिर बनाइये व सन्तान प्राप्ति का आशीर्वाद दीजिए। वर्तमान में जिस स्थान पर शिवजी का मंदिर है उस स्थान पर पुराने वक्त में ब्यास नदी का स्वरूप अत्यंत भयंकर होता था। ऐसे में एक तरफ ब्यास नदी तो दूसरी तरफ पहाड़ होने से वहां पर मंदिर का निर्माण करना मुश्किल था। ऐसा देखते हुए लोग जब आगे बढ़े तब उन्हें नजर आया कि नीचे नदी किनारे एक काली गाय खड़ी है। उसके स्तनों से दूध अपने आप बह रहा था। वह गाय ब्यास नदी तैर कर आई हुई थी। तब महात्मा जी बोले कि भगवान यहीं पर होंगे, जब वहां से मिट्टी हटाई तो जो शिवलिंग अभी मंदिर में है उसके दर्शन हुए।
तब महात्मा जी ने वहां पर मंदिर का काम शुरू करवाया। आज जितनी चिनाई करते कल वह शिवलिंग उतना ही ऊपर आ जाता। यह सारा वृतांत देखकर महात्मा जी बड़े आश्चर्य चकित हुए और उन्होंने वहां पर एक हवन यज्ञ किया। हवन होने के पश्चात् महात्मा जी को भारी जनसमूह के सामने भविष्यवाणी हुई कि जब तक मैं स्थिर न हो जाऊं तब तक मंदिर का निर्माण नहीं करना। इसी प्रकार चिनाई के साथ साथ शिवलिंग भी ऊपर आता गया। शिवलिंग के स्थिर होने के बाद मंदिर का निर्माण किया गया।
एक साल बाद वजीर के घर जो लडक़ा हुआ उसके पांच साल के होने तक मंदिर बनकर तैयार हो गया। बाद में उसी लडक़े से मंदिर की प्रतिष्ठा कराई गई। मन्दिर के एक तरफ ब्यास नदी, दूसरी तरफ बिनवा नदी तथा शिवलिंग के नीचे से एक गुप्त गंगा (क्षीर गंगा) बहती है। जिसका पानी गंगा नदी की तरह ही पवित्र माना जाता है। इन्हीं तीन नदियों के संगम के कारण इस मंदिर का नाम त्रिवेणी महादेव पडा़। शिखर मण्डलीय शैली में बना यह भव्य एवं प्राचीन मंदिर नींव से लगभग 50 फुट ऊंचाई पर बना हुआ है।
वर्तमान में मुख्य मंदिर के आसपास दूसरे छोटे मंदिर भी स्थापित किये गए हैं जिनमें श्री गणेश जी, हनुमान जी, शनि महाराज, मां बगलामुखी, बाबा बालक नाथ, राधा-कृष्ण मंदिर, नवग्रह, देवी शक्ति इत्यादि शामिल हैं। श्रद्धालु प्राचीन गुफा के भी दर्शन कर सकते हैं जो मुख्य मंदिर से महज 100 या 150 मीटर की दूरी पर है। इस मंदिर का संचालन मंदिर प्रबंधन समिति द्वारा किया जा रहा है। महाशिवरात्रि पर्व के अवसर पर यहां पर भव्य कार्यक्रम का आयोजन किया जाता है।
प्राकृतिक सौंदर्य की दृष्टि से भी कम खूबसूरत नहीं है यह स्थान
धार्मिक महत्व के साथ-साथ प्राकृतिक सौंदर्य की दृष्टि से भी यह स्थान कम खूबसूरत नहीं है। इस स्थान पर जहां ब्यास, बिनवा व क्षीर गंगा का अनूठा संगम देखते ही बनता है तो वहीं यहां का शांत वातावरण एवं नदियों की कल-कल बहती धाराओं की गूंज मन को एक अलौकिक सुकून भी प्रदान करती हैं। ध्यान साधना की दृष्टि से भी यह स्थान महत्वपूर्ण है।
कैसे पहुंचें त्रिवेणी महादेव
इस पवित्र धार्मिक स्थान के दर्शन करने के लिए श्रद्धालु जोगिन्दर नगर से लडभड़ोल होते हुए सडक़ मार्ग से इस पवित्र स्थान तक आसानी से पहुंच सकते हैं। यह पवित्र स्थान जोगिन्दर नगर उपमंडल के अंतर्गत ग्राम पंचायत उटपुर के गांव घटोड में स्थित है। प्रसिद्ध धार्मिक स्थान बैजनाथ से यहां की दूरी लगभग 35 किलोमीटर है। इसके अलावा श्रद्धालु संधोल से होकर बैरी गांव तक सडक़ मार्ग से आ सकते हैं। यहां से झूला पुल के माध्यम से वे त्रिवेणी महादेव के दर्शन कर सकते हैं। इसके अलावा कांगडा जिला के जयसिंहपुर, हारसीपतन होते हुए सरीमोलग से भी इस पवित्र स्थान तक पहुंचा जा सकता है। यहां से सबसे नजदीकी रेलवे स्टेशन बैजनाथ-पपरोला ही है जबकि नजदीकी हवाई अड्डा कांगड़ा है।