संवाददाता/ सुभाष शर्मा
डॉ यशवंत सिंह परमार औधानिकी एवं वानिकी विश्वविद्यालय नौनी यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर राजेश्वर सिंह चंदेल ने कहां कि हिमाचल प्रदेश को देवभूमि का दर्जा दिया दिया गया है। उन्होंने कहा हिमाचल प्रदेश में धार्मिक एवं मनमोहक पाठक स्थल देश-विदेश के लोगों को अपनी ओर आकर्षित करते हैं। इसके अतिरिक्त हमारे प्रदेश को जहां के उच्च गुणवत्ता वाले फल फूल सब्जियां एवं बहुत से प्राकृतिक कृषि बागवानी उत्पाद के लिए भी जाना जाता है। जलवायु के आधार पर हिमाचल को चार क्षेत्रों में बांटा गया है। तथा जहां की विविध जलवायु परिस्थितियों में हमारे परिश्रमी किसान बागवान विश्वविद्यालय द्वारा विकसित नवीनतम तकनीकों को अपनाकर अपनी आए और प्रदेश की अर्थव्यवस्था में भी भागीदारी बन रहे हैं। एशिया का पहला बागवानी विश्वविद्यालय होने का गौरव संस्थान को प्राप्त है। पिछले करीब 4 दशकों से बागवानी में हिमाचल प्रदेश द्वारा की गई प्रगति में इस स्थान को यह भूमिका रही है। आज अकेले सेव की व्यवस्था लगभग 5000 करोड़ तक पहुंच गई है। जिसका श्रेय विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों के साथ-साथ प्रदेश के मेहनतकश भगवानों को भी जाता है। भविष्य की चुनौतियों के लिए किसानों को तैयार करने के लिए विश्वविद्यालय फसल विविधता, सही किस्मो का चयन पर्यावरण मित्र अधोगति और प्राकृतिक खेती जैसी नवीनतम कृषि पद्धति को किसानों के बीच बढ़ावा दे रहा है।विश्वविद्यालय द्वारा समय-समय पर बागवानी व वानिकी से संबंधित नवीनतम जानकारी किसानों को उपलब्ध कराई जाती है। आज हिमाचल प्रदेश के प्राकृतिक खेती मॉडल की देश के अलावा बहुत से पहाड़ी देशों में चर्चा है। और वह इस कृषि पद्धति को सीखने के इच्छुक है। इस पद्धति साथ-साथ पर्यावरण संरक्षण में जय बहुत लाभकारी है।ने किसानों की लागत को तो काम किया ही है। इस सतत विकास लक्ष्यों को हासिल करने के लिए एक सरल मार्ग है। इस पर्यावरण हितेषी कृषि के विस्तार में हिमाचल के किसान और वैज्ञानिक अहम भूमिका निभा रहे हैं। इस मार्गदर्शिका में प्राकृतिक खेती और श्री अन मुलेट जिसका अंतरराष्ट्रीय वर्ष भी मनाया जा रहा है। पर अलग से जानकारी शामिल की गई है। जो कि एक अच्छी पहल है। मुझे पूरा विश्वास है कि वे किसान मार्गदर्शिका किसानों तक नई जानकारी पहुंचाने का एक सरल एवं प्रभावी माध्यम बनेगी। इस प्रकाशन से जुड़े विश्वविद्यालय के सभी वैज्ञानिकों एवं अधिकारियों को मैं बधाई देता हूं। आशा करता हूं कि भविष्य में भी विश्वविद्यालय इसी तरह के नए-नए प्रयास कर किसान बागवान की प्रगति के लिए दिशा दिखाता रहेगा।