संवाददाता / देवराज ठाकुर
रामपुर तैहसील के अंतर्गत डंसा में दस मई को नोग वैली चार ठहरी भगवान परशुराम जन्मोत्सव पर होगा मेले का आयोजन
रामपुर बुशैहर के अंतर्गत डंसा के डमयापुरी में नोग वैली चार ठहरी भगवान परशुराम जन्मोत्सव के उपलक्ष्य पर मेले का आयोजन किया जाएगा।यह जानकारी नोग गोड़ी चार ठहरी परशुराम देव समिति के अध्यक्ष बहादुर लाल शर्मा व प्रेस सचिव तन्मय शर्मा ने दी। उन्होंने बताया कि 10 मई,2024 को प्रातः 7 बजे मंडप स्थापना, परशुराम झांकी देवताओं का स्वागत 9 बजे सुबह, कथा 10 बजे सुबह, हवन पूर्णाहुति दोपहर 1बजे, भंडारा दोपहर डेड बजे व देवताओं की विदाई 5 बजे सांय को होगी। उन्होंने सभी जनता से आग्रह किया है कि सभी द्वितीय ठहरी डंसा (डमयापूरी ) स्थान में पधारे और भगवान परशुराम व देवताओं का आशीर्वाद ग्रहण कर मेले की शोभा को बढ़ाएं।
क्या है भगवान परशुराम की गाथा?
त्रेता युग में अपनी माता रेणुका की हत्या के पाप से भगवान परशुराम बहुत पीड़ित हो चुके थे। मात्र हत्या पाप की प्रायश्चित के लिए वे एक स्थान से दूसरे स्थान की ओर भटक रहे थे, किंतु कहीं भी उन्हें शांति नहीं मिल रही थी। इसी बीच भगवान परशुराम सोनितपुर राज्य जिसे वर्तमान में बुशहर रियासत भी कहा जाता है वहाँ पहुंचे। सबसे पहले भगवान परशुराम ग्राम शानेरी मे पहुंचे। अपनी प्रायश्चित यात्रा में प्रभु कहीं भी व्याकुलता के कारण रुक नहीं पा रहे थे, पर इस जगह पहली बार उन्होंने पड़ाव डाला और कुछ समय वे यहां रुके और तपस्या की,लेकिन उन्हें शांति नहीं मिली। उनके मन में शमशमी (असहजता ) का भाव उत्पन्न हुआ, जिस कारण इस ग्राम का नाम शामयापुरी पड़ा। यहां से प्रभु कुछ आगे बढ़ कर ग्राम डंसा पहुंचे।जहाँ पहली बार परशुराम का चित शांत हुआ। वहाँ परशुराम ने लम्बे समय तक तप्प किया और उत्तराखंड से लाकर ब्राह्मणो को वहाँ पर बसाया,जिन्हे कुमोऊ कहा जाता है।डंसा ग्राम में परशुराम के मन में डम- डमी (थोड़ा दुख,थोड़ी ख़ुशी ) के भाव उतपन्न हुए। जिस कारण इस ठहरी का नाम डम्रापुरी पड़ा। यहाँ दैत्यगुरु शुक्राचार्य की तपोभूमि थी और आज भी वे देव रूप में यहाँ विराजमान है।डम्रापुरी से परशुराम अपने तीसरे पड़ाव ग्राम लालसा पहुंचे,जहाँ पर सतयुग से माँ मांगलाकली का वास था ये वही स्थान है जहाँ माँ ने रक्तबीज का वध किया था।साथ ही उज्जैन से आकर बसे हुए ब्राह्मणो द्वारा माता की सेवा होती थी।माता का तत्कालीन मंदिर को एक राक्षस द्वारा क्षति पहुंचाई गयी थी। जिसका परशुराम ने राक्षस को मार्म जे बाद जीर्णोद्धार किया। इस ग्राम में रुक कर भगवान् ने तप किया,किन्तु उनके मन में लालसा उत्पन्न हुई।जिस कारण इस ग्राम का नाम लयापुरी पड़ा।ये लयापुरी देव गुरु ब्रास्पति की तपोभूमि भी थी।फिर परशुराम पूर्ण शांति और पाप से मुक्ति के लिए आगे बढ़े और ग्राम शिंगला पहुंचे। जहाँ पहुंच कर उन्होंने तप किया और उनके मन को पूर्ण शांति मिली और मातृ हत्या के पाप से भी मुक्ति मिली। प्रसन्न हो कर भगवान् परशुराम ने वहाँ ब्राह्मणो के इलावा छोटी जाति के लोग रहते थे उनका यज्ञयोपवित करा कर उन्हें ब्राह्मण बना दिया और जाते -जाते ग्राम वासियों को एक शंख दिया कि अपात्काल में ये शंख बजाओगे तो वे प्रकट हो जायेंगे। ये शंख 19वीं शताब्दी तक इस मंदिर में विद्यमान था। एक दिन बच्चों ने खेल- खेल में शंख बजाया तो परशुराम प्रकट हुए और अकारण बुलाये जाने पर क्रोधित हो शंख को साथ ले कर लौट गए।उपरोक्त चारों गांवो में परशुराम के ठहरने के कारण इन्हे ठहरियां कहा जाता है जो क्रमशः शमयापुरी,डामरा पुरी,लयापुरी, और क्षयापुरी है। इन नामो के अनुरूप ही आज भी वहाँ रहने वालों के भाव वैसे ही है, जैसे परशुराम के यहाँ आने पर हुए थे।ग्राम डंसा शिंगला और शानेरी में प्रभु द्वारा स्थापित विशाल शिवलिंग आज भी मौजूद है।ग्राम डंसा में आज भी परशुराम साक्षात् रूप में विद्यमान है। मंदिर परिसर में उनका एक प्राचीन मंदिर स्थापित है,जिसमें प्रभु कलश रूप में विराजित हैं। ये कलश बहुत ही विशिष्ट आयोजन में अपने मंदिर से बाहर आता है।शानेरी ग्राम में माँ मंगला काली के साथ देव गुरु बृहस्पति अपने- अपने मंदिरो में उपस्थित है। डंसा मे परशुराम के साथ देव दमुख ( दैत्यगुरु शुक्राचार्य ) एवं माँ भद्रकाली विराजमान है।ग्राम शानेरी मे खड़ेश्वर महादेव देबता जाहरूनाग के साथ विराजमान हैँ और सबसे छोटी ठहरी शिंगला में नरसिंह भगवान् यगेश्वर महादेव ये साथ उपस्थित हैँ।इन चारो ठेरियों में रहने वाले ब्राह्मणो को सर्वश्रेषठ ब्राह्मण मना जाता है और पुरे बुशहर में कहीं भी कोई भी देव कार्यक्रम हो सबसे पहले ठहरियों के ब्राह्मणो की ही पूजा और सेवा की जाती है।इन चार ठहरियों की स्थापना से पहले परशुराम ने 5 स्थान भी स्थापित किये जो निरथ, दत्तनगर, निरमंड, काव व मामेल है।निरथ में कोणार्क के बाद भारत का दूसरा सूर्य मंदिर स्थापित है। निरमंड में भगवान् परशुराम ने पहली बार अपनी माता का श्राद्ध भगवान् राम की उपस्थिति में दिया था। काव ग्राम वर्तमान में मंडी के कामक्षा माता हैँ और ममेल वर्तमान में ममलेश्वर महादेव नाम से विख्यात हैँ, जहाँ पांडवो द्वारा भी तप किया गया। हिमाचल में सिर्फ ये चार ठहरी और पांच स्थान के देवशक्तियां ही हैँ,जिन्हे सबसे बड़े यज्ञ भुण्डा महायज्ञ जिसे नर मेध यज्ञ भी कहा जाता हैँ वो इन ठहरियों के बिना अधूरा रहता हैँ। आज भी पुरे हिमाचल में भगवान् परशुराम द्वारा स्थापित ठहरियों का अपना एक सर्वश्रेष्ठ स्थान है और परशुराम आज भी यहां साक्षात वास करते हैं।